कक्षा 6
विषय- हमारी माँ का नौकरी न करना समाज के हित में है।
पक्ष: राघव मिश्रा, कक्षा 6 ई, (कृष्णा)
विपक्ष: अनन्या वाजपेई कक्षा 6 ए ( गोदावरी)
कक्षा 7
विषय- मित्र हमारे विकास में सहायक होते हैं।
पक्ष: सान्या भार्गव कक्षा 7 एफ, (गोदावरी)
पक्ष: मानस साईंनाथ कक्षा 7 एफ ( नर्मदा)
विपक्ष: अलिजा कादिर कक्षा 7 एफ ( कृष्णा)
कक्षा 8
विषय- मित्र हमारे विकास में सहायक होते हैं।
पक्ष: काम्या राय कक्षा 8 एफ, (गंगा)
विपक्ष: अदिति शुक्ला कक्षा 8 डी ( गोदावरी)
कक्षा 9
विषय- महिला अच्छी प्रबन्धक होती है।
पक्ष: त्विषा दीक्षित कक्षा 9 बी (गंगा)
विपक्ष: मान्या मेहता कक्षा 9 एफ ( गोदावरी)
कक्षा 10
विषय- ज्ञान कहीं बाहर से ग्रहण नहीं किया जा सकता है।
पक्ष: आर्जवी जैन कक्षा 10 सी (कृष्णा)
विपक्ष: अनन्या वाजपेई कक्षा 10 जी (गोदावरी)
कक्षा 11
विषय-विचार नहीं, व्यवहार की जीत होती है।
पक्ष: सौम्या शर्मा कक्षा 11 डी (नर्मदा)
विपक्ष: शाम्भवी कर्ण कक्षा 11 डी ( नर्मदा)
कक्षा 12
विषय- साहित्य का अध्ययन जीवन के लिए उपयोगी नहीं।
पक्ष: शताक्षी कक्षा 12 ए (कृष्णा)
विपक्ष: अभिनव श्रीवास्तव कक्षा 12 ई (गंगा)
House position
प्रथम-गंगा
द्वितीय-कृष्णा
तृतीय-गोदावरी
चतुर्थ-नर्मदा
मुख्य बिन्दु-
इस सत्र के वाद-विवाद प्रतियोगिता में इस बात पर जोर दिया गया कि विद्यार्थी रटने की बजाय कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रख कर स्मृति और पूर्व में एकत्र की गई जानकारियों केआधार पर अपनी बात रखें। इससे वे निरन्तर ज्ञानार्जन के लिए प्रयत्नशील रहेंगे और किसी अवसर पर थोड़ी देर पहले मिली सूचना या तत्काल अपनी बात रखनी हो तो वे सुनियोजित तरीके सेअपनी बात रख सकें। यह प्रतियोगिता दिनांक- 04 अगस्त 2016 को सम्पन्न हुई। बच्चों ने अपनी बात दमदार तर्को के साथ रखी-
सान्या भार्गव, कक्षा 7 एफ, का कहना था कि-‘‘सच्चे मित्र हमें गिरने नहीं देते, न किसी के कदमों में न किसी की नजरों से।’’ उसने कृष्ण और अर्जुन का उदाहरण देकर मित्र के महत्त्व को बताया।
मानस का कहना था कि मित्र दूध में मिले पानी के समान होता है। आग पर चढ़ाते समय पानी पहले जलता है इसी तरह मित्र मुसीबत में हमारे साथ खड़ा रहता है।
अलीजा कादिर,, 7 एफ, ने कहा कि कई काम हमें मित्रों के दबाव में करने पड़ते हैं। जैसे कर्ण को दुर्योधन के दबाव में अधर्म का साथ देना पड़ा।
काम्या राय, कक्षा 8 एफ, ने कहा कि मित्रों से हम वे बातें कह सकते हैं जो हम अपने माता-पिता से भी, कभी-कभी नहीं कह पाते। अदिती शुक्ला, 8 डी का कहना था कि घोर प्रतिद्वंद्विता के इसयुग में ‘ सच्चा मित्र’ नाम का प्राणी विलुप्त हो चुका है।
राघव मिश्रा, 6 ई ने अपने तर्क रखते हुए कहा कि माताओं के पास, जब वे नौकरी करने लगती हैं, तब बच्चों में संस्कार डालने के लिए समय नहीं रह जाता। इसलिए उन्हें नौकरी नहीं करनीचाहिए। इसके विपरीत अनन्य वाजपेयी ने कहा कि नौकरी करने का जितना अधिकार पुरुष को है उतना ही स्त्री को भी। परिवार के ठीक ढंग से भरण-पोषण के लिए स्त्री का नौकरी करनाआवश्यक है।
ज्ञान कहीं बाहर से ग्रहण नहीं किया जा सकता, इस विषय पर बोलते हुए आर्जवी जैन, 10 सी ने कहा कि इंसान ही ज्ञान को जन्म देने वाले है। फिर वह बाहर से ग्रहण करने वाला कैसे हो सकता है? विवेकानन्द ने भी कहा है कि बाहरी ज्ञान जैसा कुछ नहीं होता। अन्तःप्रज्ञा ही ज्ञान है। अनन्या वाजपेयी, 10 जी, का कहना था कि तपस्या द्वारा ज्ञान अर्जित किया जाता है।
त्विषा 9 बी, ने कहा कि नारी एक कुशल प्रबन्धक होती है यह हम अपने घर में ही देख सकते हैं। उसने जयशंकर प्रसाद की पंक्तियाँ उद्धृत की-
नारी तुम कवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नभ पग तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो
जीवन के सुन्दर समतल में।।
त्विषा के तर्कों का विरोध करते हुए मान्या मेहता, 9 एफ का तर्क था कि महिलाएँ भ्रमित रहती है।वे अपने लक्ष्य पर एकाग्र नहीं रहती हैं, इस कारण कुशल प्रबन्धक नहीं सिद्ध होती हैं।
शाम्भवी कर्ण ,11डी, ने सिद्ध किया कि विचार की जीत होती है। पहले विचार जन्म लेता है तब व्यवहार उसका अनुगमन करता है। सौम्या शर्मा का कहना था कि व्यवहार और कार्य, विचार सेअधिक महत्त्वपूर्ण है। तभी तो महात्मा गाँधी ने कहा है कि मेरा कर्म ही मेरा सदेश है।
अभिनव श्रीवास्तव, 12 ई, ने मजबूती से साहित्य का पक्ष लेते हुए कहा कि साहित्य के अध्ययन से हमारे व्यक्तित्व और विचारधारा में निखार आता है। जीवन का मार्ग निश्चित करने की दिशामिलती है। शताक्षी, 12 ई, ने महाप्राण निराला, भुवनेश्वर इत्यादि का उदाहरण दिया और कहा कि साहित्य रोजी-रोटी की व्यवस्था नहीं कर सकता।
निष्पक्षता बनाए रखने और विद्यार्थी-अध्यापक का संवाद बनाए रखने के लिए, सभी निर्णायक, वे शिक्षक बनाए गए जो उन वर्गो में नहीं पढ़ाते हैं।
प्रामिनी चोपड़ा और अल्पना गोयल मैम का धन्यवाद, जिनके दिशा निर्देशन और भाषा-साहित्य में रुचि लेने की प्रवृत्ति के कारण वाद-विवाद प्रतियोगिता उत्साह के वातावरण में सम्पन्न हुई।अन्त में राघव मिश्रा की कुछ भावपूर्ण पंक्तियाँ
नहीं हो सकता तेरा कद ऊँचा, किसी भी माँ से ऐ खुदा
तू आदमी बनाता है तो, वो इंसान बनाती है।
प्रस्तुति-
डॉ. किरन सिंह
हिन्दी विभाग